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मां के मन की व्यथा गणेशजी से कैसे छिपी रहती. उन्होंने पिता को वापस लाने की बात ठान ली. गणपति ने अपनी माया फैलाई.
एक बार राजा के काम से विद्यापति को कहीं दूर जाना पड़ा. रास्ते में घना जंगल पड़ा. “उगना” रुपी महादेव छाया की तरह अपने संसारी मालिक विद्यापति के साथ लगे हुए थे.
गणपति ने अपनी माया को गहरा किया. विद्यापति को ऐसी जोर की प्यास लगी कि कंठ सूखने लगा. प्यास से तड़पने लगे. लगा जल न मिला तो प्राण निकल जाएंगे. उन्हें क्या खबर थी कि स्वयं महाकाल साथ में हैं तो काल क्या बिगाड़ेगा.
उन्होंने “उगना” को आदेश किया- मेरे लिए कहीं से तुरंत पानी लेकर आओ नहीं तो मैं मरा ही समझो. अब इस वीराने में पानी कहां से मिलता.
महादेव कुछ दूर गए, अपनी जटा खोलकर गंगा की एक धारा निकाली और लोटा भर लिया. गंगाजल लेकर विद्यापति के पास आ गए.
विद्यापति ने जल पीया और प्यास बुझ गई लेकिन मन में संदेह जाग गया. इस वीराने में ऐसा निर्मल गंगाजल वह भी पलभर में ले आया उगना! यह संभव हो ही नहीं सकता.
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