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मोहिनी पैर पटककर चली गयी तो ब्रह्माजी को अपने अहंकार का बोध और गलती का अहसास हुआ. हो सकता है शाप फलित ही हो जाए. सो तुरंत भगवान विष्णु की शरण में वैकुंठ भागे. थोड़ी ही देर में वह भगवान विष्णु को अपनी कथा सुना रहे थे.

ब्रह्माजी ने अपनी बात शुरू ही की थी कि द्वारपाल ने आकर कहा- प्रभु फलां ब्रह्मांड के अधिनायक षट्मुख (छहमुखी) ब्रह्माजी आपके दर्शन को उपस्थित हुए हैं. प्रभु ने कहा भेज दो. षट्मुख ब्रह्मा आए. स्तुति की आपनी बात कही और चले गए.

वह गये तो ब्रह्माजी ने फिर अपनी कहानी शुरू की पर तब तक द्वारपाल ने किसी अष्टमुख ब्रह्मा के आने की सूचना दी. वह आये और दिव्य स्तुति सुनाई. एक के बाद एक अलग अलग ब्रह्मांड के सह्स्रमुख वाले ब्रह्मा तक वहां आए.

ब्रह्माजी अपनी बात पूरी नहीं कह पाये. सब से निबट कर जब भगवान विष्णु उनकी तरफ मुड़े तो ब्रह्माजी चुप थे. ब्रह्माजी ने देखा उनसे कई गुना योग्य, बुद्धि, विद्द्या, भक्ति, शक्ति सब में बढे-चढे जो भी ब्रह्मा आए बिना किसी अहंकार के सहज सरल थे.

ब्रह्माजी का गर्व गल कर पानी हो गया. भगवान ने कहा अपने गर्व को गंगा में धो डालो. ब्रह्माजी वहां से उठकर चले आए. सर्वश्रेष्ठ तपस्वी और विजितेंद्रिंय होने के घमंड से उपजे पाप को उन्होंने गंगा स्नान कर धो ड़ाला. (ब्रह्मवैवर्त पुराण)

संकलनः सीमा श्रीवास्तव
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