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पुत्र मेघनाद को पिता की खोज-खबर लेने हेतु भेजा. मेघनाद पिता को खोजने निकला तो उसे रावण एक स्थान पर जड़वत होकर बैठा दिख गया.

मेघनाद ने देखा कि पिताजी एकटक जल में लहराती एक पंखुडी निहार रहे हैं. उनका मन अविचल स्थिति में शांत तो है किंतु कुछ चिंतित भी है.

मेघनाद ने पिता से इस स्थिति का कारण पूछा. रावण ने कमल की पंखुड़ियां दिखाई और अपने मन की सारी अभिलाषा अपने प्रिय पुत्र को विस्तार से कह सुनाई.

मेघनात जितना बड़ा शूरवीर और पराक्रमी युवराज था उतना ही बड़ा पितृभक्त भी. उसने पिता की प्रसन्नता के लिए अनेक युद्ध किए थे और अपना सर्वस्व देने को तत्पर रहता था.

मेघनाद ने पिता को प्रसन्न करने के लिए कहा- पिताजी आप चिंता न करें. तीनों लोक में ऐसी कौन सी वस्तु है जो आपके लिए दुर्लभ हो. आपके आदेश पर स्वयं इंद्र यहां खड़ा होकर आदेशपाल बन जाए.

देवलोक के समस्त पुष्प आपके चरणों में समर्पित हो जाएं फिर तो ये जल में प्रवाहित होते कमल की पंखुड़ियां ही हैं. इनके लिए आपको विचलित होने की आवश्यकता ही नहीं.

मेघनाथ गर्व में चूर बोलता रहा- हे लंकापति जिनके चरणों में देवतागण आकर शीश नवाते हैं उन्हें कमलपुष्प के लिए उदास होने की क्या आवश्यकता. आप आदेश करें तो समस्त देवगण इसे तीनों लोकों में से खोजकर लाकर आपकी सेवा में उपस्थित कर देंगे.

परंतु आप ये कमलपुष्प अपने आराध्य भोलेनाथ को समर्पित करने के लिए चाहते हैं इसलिए किसी देवता को नहीं भेजकर मैं स्वयं इसे लाने जाउंगा. तीनों लोकों में जहां भी इस पंखुडी के पुष्प लगे होंगे, मैं वहां से अभी इसे खोजकर लिए आता हूं. आप भोलेनाथ को इसे अवश्य अर्पित करेंगे.

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