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उन्हें देखकर इन्द्र ने बड़ी प्रसन्नता के साथ उनके दोनों चरणों में मस्तक झुकाया और उनके समक्ष अठारहवें अध्याय को पढ़ा। उसका प्रभाव ऐसा हुआ कि उन्होंने श्री विष्णु का सायुज्य प्राप्त कर लिया।
माता पार्वती को इतनी कथा सुनाने के बाद भगवान महेश्वर बोले- देवि, इन्द्र आदि देवताओं का पद बहुत ही छोटा है, यह जानकर वे परम हर्ष के साथ उत्तम वैकुण्ठ धाम को गये। अतः यह अध्याय मुनियों के लिए श्रेष्ठ परम तत्त्व है।
हे पार्वती! गीता के अठारहवें अध्याय जिसे मोक्ष संन्यास योग कहा जाता है, के इस दिव्य माहात्म्य का वर्णन समाप्त हुआ। इसके श्रवण मात्र से मनुष्य सब पापों से छुटकारा पा जाता है। इस प्रकार सम्पूर्ण गीता का पापनाशक माहात्म्य बतलाया गया।
हे महाभागे! जो पुरुष श्रद्धायुक्त होकर इसका श्रवण करता है, वह समस्त यज्ञों का फल पाकर अन्त में श्रीविष्णु का सायुज्य प्राप्त कर लेता है।
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Amarkatha konsi he jo Mahadev ne mata Parvati ko sunai thi, amarnath gufa me
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