भृगु द्वारा दिए मंत्र का जाप करने के बाद राम ने अपने पिता जमदग्नि को जीवित कर लिया.जब भृगु वहां से प्रस्थान कर गये और जमदग्नि स्वस्थ अनुभव करने लगे तो परशुराम कार्तवीर्य को मार डालने के निश्चय से आश्रम से विदा होने लगे.

जमदग्नि ने परशुराम को बहुत समझाया कि यह साधु, ब्राह्मण या ऋषि-मुनि प्रतिशोध का भाव नहीं रखते. मैं भी कार्तवीर्य का शाप से अनिष्ट कर सकता था लेकिन मैंने नहीं किया.

कार्तवीर्य ने जो किया वह उसकी दुर्बुद्धि है. साधु का काम है क्षमा. हिंसा करना हमें शोभा नहीं देता. पर राम ने एक न सुनी. उन्होंने कहा कि मैं प्रण कर चुका हूं. प्रण से पीछे हटने में कुल का मान घटता है, भृंगुवंश की हंसी होगी.

परशुराम जब किसी विधि मानने को तैयार न थे तो जमदग्नि ने कहा- पुत्र जो होनी होगी वह तो होकर रहेगी. मेरे कहने से तुम अपने लक्ष्य की ओर बढने से पहले ब्रह्माजी के दर्शन कर लो. राम पिता की आज्ञा से ब्रह्मा के पास पहुंचे.

ब्रह्माजी को सारी बात कहकर परामर्श मांगा. ब्रह्मा बोले- शूद्र, वैश्य, ब्राह्मण और क्षत्रिय चारों वर्णों के सहयोग से पृथ्वी की व्यवस्था चलती है.उसके एक अंग को 21 बार नष्ट करना चाहते हैं. आप बड़े श्रम से रची गयी सृष्टि का विनाश करना चाहते हैं.

कई क्षत्रिय शिवांश हैं. उनको शिव कवच प्राप्त है. मुझे तो लगता है कि बिना भगवान शिव को बताए और बिना उनकी अनुमति लिए यह कार्य करना न तो शुभ होगा और न ही उचित.

आप शिवलोक जाए और महादेव की अनुमति लें तब ही इस कार्य को करने की इच्छा रखें. परशुराम ने ब्रह्माजी को प्रणाम किया और वहां से एक लाख योजन ऊपर शिवलोक को चले.

शिवलोक पहुंचकर परशुराम ने भगवान शिव की विधिवत पूजा की. भगवान शिव के पूछने पर परशुराम ने अपना पूरा परिचय देकर कार्तवीर्य के अपराध और क्षोभ में 21 बार धरा को क्षत्रियविहीन करने के प्रण के बारे में बताया.

परशुराम ने कहा- हे महादेव मुझे इसकी अनुमति दें. भगवान शिव ध्यान मुद्रा में एक क्षण को सोचने लगे तो मां पार्वती ने राम से पूछा- क्या तुम वास्तव में भूमंडल को भूपों से विहीन करना चाहते हो वह भी 21 बार? यह तो घोर दुस्साहस होगा.

मां पार्वती ने आगे कहा-कार्तवीर्य को भगवान दत्तात्रेय का दिया विष्णु कवच प्राप्त है, जो हज़ार हाथों की शक्ति रखता है और अपनी टेढी नजर से ही रावण जैसे पराक्रमी को हरा सकता है, सभी शस्त्रों का ज्ञाता है, उसे तुम लगभग निहत्थे ही समाप्त करोगे!

तभी भगवान शिव बोल पड़े- आज से तुम मेरे पुत्र कार्तिकेय के समान हो जाओगे. मैं तुम्हें दिव्य कवच और अमोघ मंत्र देता हूं. अपने साहस के साथ इनकी सहायता से अपनी प्रतिज्ञा भी पूरी करोगे और कार्तवीर्य सहस्रार्जुन का वध भी.

भगवान शिव से अपना अभीष्ट प्राप्त कर राम ने कार्तवीर्य के राज्य महिष्मती की राह पकड़ी. अपनी इस यात्रा में परशुराम ने श्रीकृष्ण कवच का पाठ कर उसे सिद्ध किया.

वह एक जंगल में विश्राम के लिए रूके तो वहां उन्होंने एक मृग और मृगी को बहुत रोचक बातें करते सुना. उसमें एक बड़ा रहस्य था. फिर वह अगस्त्य ऋषि के आश्रम में रूके और उनसे मृग की बात का रहस्य पूछा.(मृग की रोचक कथा अगली पोस्ट में)

राम महिष्मती नगरी पहुंचे. परशुराम ने नर्मदा नदी को प्रणाम कर कहा- हे नर्मदे! आप स्वयं भगवान शिव की देह स्वरूप हैं. मैं अपने महाशत्रु पर शीघ्र विजय पाऊं इसका आशीर्वाद दें.

इसके बाद परशुराम ने कार्तवीर्य के पास एक दूत भेजकर संदेश दिया- जिस जमदग्नि सरीखे महान और निष्पाप ऋषि का मानमर्दन और हत्या तुमने की है, उस मुनि का पुत्र परशुराम तुम्हें दंड देने आ गया है. अब तुम्हारी मृत्यु निश्चित है.

कार्तवीर्य बहुत क्रोधित हुआ. उसने सेना को तुरंत कूच मुनिपुत्र को पकडकर ले आने का आदेश दिया. उसकी विशाल सेना नर्मदा के उत्तरी तट की ओर बढ चली जहां राम अपने शिष्य अकृतवर्ण के साथ एक बरगद के पेड़ के नीचे रुके थे.

राम ने अकृतव्रण के साथ मिलकर तीन दिन और तीन रात तक बिना थके युद्ध करते हुए कार्तवीर्य के समर्थन में आए अनेक बाहुबली राजाओं और उनकी करोड़ों की संख्या की सेना को नष्ट कर डाला.

आखिर में एक राजा सुचंद्र सामने आया जिस पर परशुराम के किसी अस्त्र का कोई असर नहीं हुआ. मां काली स्वयं उसकी रक्षा में खड़ी थीं. परशुराम ने काली की स्तुति की और बताया कि शिवजी की अनुमति से युद्ध कर रहे हैं.

प्रसन्न होकर माता काली ने बताया कि सुचंद्र की रक्षा मैं सभी अस्त्रों से तो करूंगी लेकिन मैं आग्नेयास्त्र से उसकी रक्षा नहीं करूंगी. परशुराम ने आग्नेयास्त्र का प्रयोगकर सुचंद्र का संहार किया.

सुचंद्र के बाद उसका बेटा पुश्कराक्ष युद्ध के लिये आया. वह भी महान योद्धा था. उसके साथ परशुराम का बड़ा भीषण युद्ध हुआ. परशुराम ने उसे भी मार डाला तो कार्तवीर्य रणभूमि में आया.

दोनों के बीच इतना भीषण युद्ध छिड़ा कि तीनों लोक उसे देखने लगे. परशुराम ने दो तीर एक साथ छोड़कर कार्तवीर्य के दोनों कान काट गिराये जिसे देख कार्तवीर्य को आभास हो गया किया कि शत्रु साधारण नहीं है.

कार्तवीर्य पर भी प्रभु की कृपा थी. घायल होने के बाद वह फिर से युद्ध के लिए उतरा. इस बार उसने ऐसा शस्त्र चलाया कि परशुराम अचेत हो गए. मूर्च्छा टूटी तो परशुराम ने सभी देवों का आह्वान किया और फिर युद्ध में जुटे.

कार्तवीर्य पर कोई अस्त्र असर नहीं करता था. अंततः परशुराम ने भगवान शिव के पाशुपत अस्त्र का आह्वान किया. अपने परशु से कार्तवीर्य की हजार भुजाएं काट डालीं फिर पाशुपत अस्त्र से कार्तवीर्य को मार गिराया.

कार्तवीर्य के साथ उसके पुत्र और संबंधी जो भी रण में आये उनको भी परशुराम ने अपने अस्त्रों का शिकार बना ड़ाला. राजा कार्तवीर्य के पाँच पुत्र यह दशा देख भाग खड़े हुये.

कार्तवीर्य के वध तथा उसके वंश के नाश से प्रसन्न परशुराम ने अकृतव्रण के साथ नर्मदा में स्नान किया और भगवान शिव के दर्शन हेतु उनकी नगरी की ओर प्रस्थान कर गए.

संकलनः सीमा श्रीवास्तव
संपादनः राजन प्रकाश

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