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अर्जुनक ने कहा- चलो मान भी लिया कि तुम मृत्यु के अधीन हो लेकिन बालक की मृत्यु तो तेरे ही कारण हुई है. इस महिला की हानि का कर्ता तो तू ही है.
अर्जुनक ने कहा- शास्त्रों में कहा गया है, अनिष्ट करने वाले से ज्यादा दोषी अनिष्ट के लिए प्रेरित करने वाला होता है. मैंने मृत्यु की प्रेरणा से बालक को डंसा था. वह मुख्य अपराधी है.
मृत्यु के देवता तीनों का वार्तालाप सुन रहे थे. उनकी शंका मिटाने के लिए वह प्रकट हुए. मृत्यु ने कहा- मैं भी तो काल के अधीन हूं. काल की आज्ञा से मैंने सांप को डंसने के लिए प्रेरित किया था.
इसलिए बालक की मृत्यु का कारण न तो सांप है और न मैं हूं. काल ही सबका संहारक हैं. जीवों के प्राण लेने के लिए वह उत्तरदायी हैं. मुझे क्यों दोष दे रहे हो?
मृत्यु देवता की बात से अर्जुनक सहमत नहीं था. मृत्यु ने फिर कहा- हम पर आरोप लगाना अनुचित है. हम तो काल के सेवक हैं. इसलिए असली दोषी से प्रतिवाद करो.
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