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तीरथ बोला- “तुम आड़े वक्त के लिए कुछ बचाकर रखना चाहती थी. सो ईश्वर ने ऐसे आड़े समय के लिए हमें यह उपहार दिया है. ईश्वर को धन्यवाद कर कल्याणी ने थौली खोलकर धन गिना. थैली में चांती के पूरे निन्यानवे सिक्के थे.
दोनों खुश होकर विचार-विमर्श करने लगे. कल्याणी बोली- “इन्हें हमें आड़े समय के लिए रख लेना चाहिए. कल को परिवार बढ़ेगा तो खर्चे भी बढ़ेंगे. तीरथ बोला- “पर निन्यानवे तो शुभ नहीं है. क्यों न हम इसे पूरे सौ बना दें. फिर इन्हें भविष्य के लिए बचा कर रखे देंगे.
दोनों जानते थे कि चांदी के निन्यानवे रुपये को सौ रुपये करना बहुत कठिन काम है. फिर भी दोनों ने इरादा पक्का किया. तीरथ और कल्याणी पहले से चौगुनी मेहनत करने लगे. तीरथ सुबह-सुबह बर्तन बेचने निकल जाता.
शाम तक लौटता फिर बर्तन बनाता. काम खत्म होते देर रात हो जाती. कल्याणी दिन में बर्तन सुखाती और पकाती. इस तरह दोनों लोग थक कर चूर हो जाते. अब तीरथ बांसुरी नहीं बजाता न ही कल्याणी खुशी के गीत गुनगुनाती. उसे फुरसत ही नहीं थी.
वह अड़ोस-पड़ोस या मोहल्ले में भी नहीं जा पाती थी. दिन-रात एक करके दोनों पैसे जोड़ रहे थे. पैसे बचाने के लिए उन्होंने एक वक्त का खाना भी छोड़ दिया. लेकिन चांदी के सौ रुपये पूरे ही नहीं हो पा रहे थे. इस तरह तीन महीने बीत गए.
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Very nice and heart touching literature.
आपके शुभ वचनों के लिए हृदय से कोटि-कोटि आभार.
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