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भैरवनाथ भोजन से उठ गया बोला, हम तांत्रिक हैं. हमें हमारा भोजन कराओ हम यह वैष्णव भोजन नहीं करते. शराब पिलाओ मांस खिलाओ. भगवती ने जवाब दिया कि यह राक्षसों का भोजन है, हम सात्विक हिंदू हैं.
हम पशु बलि पर विश्वास नहीं रखते न हिंसा प्रधान पूजा पर. ब्राह्मणों के लिये तो यह बिल्कुल उचित नहीं, हम आप को ऐसा भोजन नहीं दे सकते न मदिरा पिला सकते हैं. सात्विक भोजन करना चाहो तो वह तैयार है.
जिस समय माता यह कह रही थीं गांव वाले भी उनका साथ दे रहे थे भैरव नाथ इतने लोगों द्वारा अपना विरोध देख कर चिढ गया. वह भोजन परोसने वाली सुंदर किशोरी पर पहले से ही नजर रखे था. उसने सोचा कि यदि वह इसके साथ कुछ करेगा तो देवी भक्त श्रीधर परेशान और गांव वाले भी अपमानित होंगे.
उसने आगे बढ कर उस किशोरी का हाथ पकड़ अपनी और खींचना चाहा. यह देखकर किशोरी के रूप में आयी माता वहां से यकायक अन्तर्धान हो गईं. भैरवनाथ हाथ मलता रह गया. पर इस बार वह अपमानित और क्रोधित हो कर भगवती का पीछा करता हुआ उनके पीछे लग गया.
मां दुर्गा का पीछा करता हुआ भैरव कहां कहां गया, महामाया की माया ने उसे समझाया, चेताया और न मानने पर किस तरह मुक्ति का मार्ग दिखलाया. क्या श्रीधर फिर मां से मिल पाया. जगदंबा का माता वैष्णो देवी बनने की पूरी कथा अगले भाग में.
संकलनः सीमा श्रीवास्तव
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