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नारदजी ने कहा- एक बार जलंधर अपनी असुरसभा में बैठा था तभी वहां दैत्यगुरू शुक्राचार्य पधारे. जलंधर ने आगे बढ़कर उनका सम्मान किया और पूजा के बाद उचित आसन दिया.
जलंधर ने शुक्राचार्य से प्रश्न किया- हे गुरूवर असुरों में परम बलशाली राहू का शीश किसने काटा था, वह बात मुझे विस्तार से जानने की इच्छा है. शुक्राचार्य ने उसे हिरण्यकश्यपु, प्रहलाद आदि दैत्य राजाओं के बारे में संक्षेप में बताकर अमृतमंथन की कथा सुनाई.
राहू ने देवताओं का रूप धरकर अमृत पीने का प्रयास किया तो इंद्र का पक्ष लेने वाले पक्षपाती श्रीविष्णु ने उसका सर काट दिया. यह सुनकर जलंधर आगबबूला हो गया. उसने अपने दूत धस्मर को बुलाया और इंद्र को संदेश भिजवाया.
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