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ब्रह्माजी ने हनुमानजी को ब्रह्मज्ञान देकर चिरायु होने का आशीर्वाद दिया. ब्रह्मा ने हनुमानजी को ब्रह्मास्त्र और ब्रह्मपाश के प्रभाव से मुक्त कर दिया.

ब्रह्माजी ने पवनदेव से कहा- तुम्हारा पुत्र अतुलित बलशाली, इच्छानुसार रूप धारण करने वाला और मन के वेग से चलने वाला हो चुका है. वह श्रीराम का परम भक्त होगा.

सभी देवों की शक्तियों से संपन्न पवनपुत्र बालकाल में ही परम तेजस्वी और परम बलशाली हो गए. एक तो वानर, दूसरे बालक और तीसरा अतुलित बल. उनमें जितना बल आया उतना ही नटखटपन भी आ गया.

हनुमानजी ऋषियों के आसन पेड़ पर टांग देते, कमंडल का जल गिरा देते, वस्त्र फाड़ डालते. कभी उनकी गोद में बैठकर खेलते और एकाएक दाढ़ी नोचकर भाग खड़े होते. उन्हें कोई रोक नहीं सकता था.

ऋषियों को लगा कि बालरूप में हनुमान अतुलित बल संभाल नहीं पा रहे.

इसलिए ऋषियों ने शाप दिया- हनुमान अपना बल भूल जाएंगे. अपने बल के ज्ञान से तब तक अंजान रहेंगे जब तक उसका स्मरण न कराया जाए.

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