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मित्रवान कहता हैः वानरराज के यों कहने पर मैं प्रसन्नता पूर्वक बकरी और व्याघ्र के साथ उस मन्दिर की ओर गया ।वहाँ जाकर शिलाखण्ड पर लिखे हुए गीता के द्वितीय अध्याय को मैंने देखा और पढ़ा ।उसी की आवृत्ति करने से मैंने तपस्या का पार पा लिया है। अतः भद्रपुरुष ! तुम भी सदा द्वितीय अध्याय की ही आवृत्ति किया करो ।ऐसा करने पर मुक्ति तुमसे दूर नहीं रहेगी।

श्रीभगवान कहते हैं- प्रिये ! मित्रवान के इस प्रकार आदेश देने पर देवशर्मा ने उसका पूजन किया और उसे प्रणाम करके पुरन्दरपुर की राह ली ।वहाँ किसी देवालय में पूर्वोक्त आत्मज्ञानी महात्मा को पाकर उन्होंने यह सारा वृत्तान्त निवेदन किया और सबसे पहले उन्हीं से द्वितीय अध्याय को पढ़ा ।उनसे उपदेश पाकर शुद्ध अन्तःकरण वाले देवशर्मा प्रतिदिन बड़ी श्रद्धा के साथ द्वितीय अध्याय का पाठ करने लगे ।तबसे उन्होंने अनवद्य (प्रशंसा के योग्य) परम पद को प्राप्त कर लिया ।लक्ष्मी ! यह द्वितीय अध्याय का उपाख्यान कहा गया ।

 

आज एकादशी है और आज ही भगवान ने गीता का ज्ञान दिया था. आज पढ़नी चाहिए गीता. अगर पूरी गीता नहीं पढ़ पा रहे तो कम से कम 18 अध्यायों का माहात्म्य ज़रूर पढ़ना चाहिए।

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