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महात्माजी की प्रसिद्धि से सब परिचित थे. राजा ने कहा- गुरूजी से कहना कि यदि वह इसे बेचना चाहें तो मैं उन्हें सारा राज्य देने को तैयार हूं. शिष्य ने कहा कि नहीं सिर्फ कीमत पता करनी है.
वह वापस आश्रम पर चला आया और सारी कहानी सुना दी. फिर बोला कि जब राजा पत्थर के बदले अपनी सारी संपत्ति देने को राजी है तो इसे बेच ही देना चाहिए.
गुरुजी ने कहा- अभी तक इसकी कीमत नहीं आंकी जा सकी है. शिष्य ने पूछा- गुरुजी राजा अपना पूरा राज्य देने को राजी है. इससे अधिक इसकी क्या कीमत हो सकती है?
गुरु ने उसे एक लोहा लेकर आने को कहा. वह लोहे के दो चिमटे लेकर आया. गुरु ने चिमटों से पत्थर का स्पर्श कराया तो वे सोने के हो गए. शिष्य की तो जैसे आंखें फटी ही रह गईं.
गुरूजी ने पूछा- तुमने इस पत्थर का चमत्कार देखा. अब बोलो इसकी क्या कीमत होनी चाहिए. शिष्य बोला- संसार में हर चीज की कीमत सोने से लगती है. पर जो स्वयं सोना बनाता हो उसका मोल कैसे लगे!
महात्माजी बोले- यह पारस है. इससे स्पर्श करते ही लोहे जैसी कुरुप और कठोर चीज सोने जैसी लचीली और चमकदार हो जाती है. भगवान के नाम का महिमा भी कुछ ऐसी ही है.
इस पारस के प्रयोग से तो केवल जड़ पदार्थ प्राप्त हो सकते हैं जो नश्वर हैं, परमात्मा तक तो यभी नहीं पहुंचा सकता. लेकिन राम नाम तो सच्चित आनंद का मार्ग है. इसका मोल पहचानो.
जिस नाम के प्रभाव से इंसान भव सागर पार करता है उस प्रभु को मामूली सी परेशानी में बुला लेना उचित नहीं. राम नाम का प्रयोग सोच-समझ कर करना चाहिए.
इसी तरह है तुम्हारी अपनी कीमत. इंसान को अपनी कीमत का तब तक पता नहीं चलता जब तक उसे सही पहचानने वाला न मिले. अब यहां से शुरू होती है आपके मतलब की बात. बड़े ध्यान से पढ़ना और समझना है.
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आपके शुभ वचनों के लिए हृदय से कोटि-कोटि आभार.
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