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शिष्य पत्थर लेकर चला. उसे सबसे पहले सब्जी बेचने वाली मिली. पत्थर की चमक देखकर उसने सोचा यह सुंदर पत्थर बच्चों के खेलने के काम आ सकता है. उसके बदले वह ढेर सारी मूली और साग देने को तैयार हो गई.
शिष्य आगे बढ़ा तो उसकी भेंट एक बनिए से हुई. उसने पूछा कि इसका क्या मोल लगाओगे.
बनिए ने कहा- पत्थर तो सुंदर और चमकीला है. इससे तोलने का काम लिया जा सकता है. इसलिए मैं तुम्हें एक रूपया दे सकता हूं.
शिष्य आगे चला और सुनार के यहां पहुंचा. सुनार ने कहा- यह तो काम का है. इसे तोड़कर बहुत से पुखराज बन जाएंगे. मैं इसके एक हजार रुपए तक दे सकता हूं.
फिर शिष्य रत्नों का मोल लगाने वाले जौहरी के पास पहुंचा. अभी तक पत्थर की कीमत साग-मूली और एक रुपए लगी थी इसलिए उसकी हिम्मत बड़े दुकान में जाने की नहीं पड़ी थी.
पर हजार की बात से हौसला बढ़ा. जौहरी ठीक से पत्थर को परख नहीं पाया लेकिन उसने अंदाजा लगाया कि यह कोई उच्च कोटि का हीरा है. वह लाख रूपए तक पर राजी हुआ.
शिष्य एक के बाद एक बड़ी दुकानों में पहुंचा. कीमत बढ़ती-बढ़ती करोड़ तक हो गई. वह घबराया कि कहीं उसे अब भी सही कीमत न पता चली हो. हारकर वह राजा के पास चला गया.
राजा ने जौहरियों को बुलाया. सबने कहा ऐसा पत्थर तो कभी देखा ही नहीं. इसकी कीमत आंकना हमारी बुद्धि से परे हैं. इसके लिए तो सारे राज्य की संपत्ति कम पड़ जाए.
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आपके शुभ वचनों के लिए हृदय से कोटि-कोटि आभार.
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