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लक्ष्मीजी ने साधु को स्वप्न में बताया कि उसने गणेशजी की मूर्ति को हटवाकर गणेशजी को नाराज कर दिया है. इसीलिए यह विपदा आई है. गणेशजी के नाराज होने से उसकी बुद्धि नष्ट हो गई. धन या लक्ष्मी के लिए बुद्धि बहुत ज़रूरी है.

लक्ष्मीजी ने साधु से यह भी कहा कि, तुम्हारी हरकत से जब तुम्हारे पास गणेशजी के कृपा से बुद्धि नहीं रही तो लक्ष्मीजी कैसे रह सकती थीं, वह भी चली गई. साधु का सपना टूटा तो उसे यह सब जान कर अपने किए पर बहुत पछतावा हुआ.

साधु को अपनी गलती का अहसास हो गया. अब उसका घमंड जाता रहा. उसने पश्चाताप किया. उसका असर यह हुआ कि अगले ही दिन राजा खुद जेल आया और साधु से गलती के लिए क्षमा मांग कर फिर से मंत्री बना दिया.

साधु ने राजा से कहा- महाराज आप जनता को बताएं कि यदि वे सर्वदा और सर्वथा लक्ष्मीवान रहना चाहते हैं तो लक्ष्मीजी के साथ-साथ गणेशजीकीभी साधना करें.

लक्ष्मी घर में प्रवेश के साथ ही मन को चंचल करके परीक्षा लेती हैं. उन्हें तो विदा होने का कारण चाहिए. उस समय गणेशजी की कृपा से सदबुद्धि प्राप्त होती है और वह ऐसे उपाए बताते हैं जिससे लक्ष्मी के पैर चंचल न होने पाएं.

मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ. माता लक्ष्मी की कृपा से सारे वैभव प्राप्त हुए किंतु मैंने गणेशजी को नहीं पूजा और बुद्धि बिगड़ी फिर क्या हुआ वह जानते ही हैं.
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