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साधु का मानना था कि यह मूर्ति राजमहल की सुंदरता को ढक कर उसका सारा सौंदर्य नष्ट कर रही थी. साधु का कहना भर था कि गणेशजी की मूर्ति को वहाँ से हटा कर एक निर्जन स्थान पर रख दिया गया.

अपने इसी अति आत्मविश्वास और घमंड तथा चमत्कार और प्रभाव दिखाने के चक्कर में एक दिन साधु ने राजा से कहा कि उसके कुर्ते में सांप है, वह तत्काल कुर्ता उतार कर फेंक दें.

राजा ने साधु का चमत्कार पहले भी देख ही रखा था, उसने भरे दरबार में अपना कुर्ता उतार कर झटक दिया. आश्चर्य कि कुर्ते में से कोई सांप नहीं निकला.

राजा साधु के पहले किये चमत्कार और उपकार भूल गया. वह बहुत नाराज हुआ और उसने न सिर्फ साधु को मंत्री पद से हटा दिया बल्कि जेल में डलवा दिया.

राजसी सुख और प्रभाव को भोग चुके साधु को यह बात बुरी तरह खली. दुखी होकर उसने कारागार में ही रह कर लक्ष्मी की घनघोर तपस्या की. आखिरकार लक्ष्मीजी साधु पर एक बार फिर प्रसन्न हो ही गयीं.
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