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कैकसी ने कहा कि तुम जिस उद्देश्य के लिए गए थे उससे भटक गए. कैलाश लाने गए थे और पत्नी लेकर आए. देवों ने छल से तुम्हें भ्रमित किया है. एक बार फिर जाओ और इस बार विशेष सावधान रहना. यहां कैलाश के अलावा कुछ और मत लाना.

रावण ने फिर से घोर तपस्या शुरू की. पहले से भी कठिन तप किया. शिवजी को पता था कि वह क्या मांगने वाला है इसलिए वह प्रकट ही नहीं होते थे.रावण ने एक-एक करके अपने सिर काटकर शिवजी को अर्पित करना शुरू किया.

भोलेनाथ पिघल गए और प्रकट हुए. रावण से वरदान मांगने को कहा. रावण ने उनसे अपनी माता के लिए कैलाश पर्वत मांगा. शिवजी ने कहा कि उसके लिए कैलाश ले जाने की क्या आवश्यकता. उन्होंने अपनी आत्मा से एक शिवलिंग उत्पन्न किया.

शिवजी ने कहा कि आत्मलिंग है. इसमें मेरी आत्मा बस गई है. मैं छोटे रूप में इसमें प्रवेश कर चुका हूं. इसे ले जाओ लेकिन ध्यान रहे लंका पहुंचने से पहले इसे नीचे मत रखना. तुम इसकी आराधना कर जब भी पुकारोगे मैं प्रकट हो जाउंगा. रावण खुश होकर आत्मलिंग लेकर चला.

रावण ने शिवजी को प्रसन्न करने के लिए अपने सिर काट दिए थे और मस्तक की नसों को वीणा की तरह बजाकर शिवजी को प्रसन्न किया था. ऐसा रावण के अलावा और कोई नहीं कर सकता, देवता इस बात को समझते थे. उन्हें भय हुआ कि आत्मलिंग के रूप में अगर शिवजी उसके पास बसने लगेंगे तो रावण न जाने उन्हें किस विधि से कब प्रसन्न कर ले और क्या मांग ले.

देवताओं ने नारदजी को चिंता बताई. नारद ने इसका निवारण करने के लिए श्रीगणेशजी से सहायता मांगी. रावण जब गोकर्ण पहुंचा तब गणेशजी ने एक बालक के रूप में गाय चराने का बहाना करके अपनी लीला आरंभ की.
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