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आज हम सनातन पर अभिमान करते हैं. कहीं भी सीना चौड़ाकर हर्ष से नाद करते हैं- गर्व से कहो हम हिंदू हैं. हमारा धर्म पूरी तरह वैज्ञानिक है, व्यवहारिक है प्रामाणिक है. पर आज से कुछ साढ़े बारह सौ वर्ष पूर्व का इतिहास जानेंगे तो कांप जाएंगे.

भारतभूमि में अवैदिक जैन और बौद्ध मत का बोलबाला था. महात्मा बुद्ध और तीर्थंकर के उपदेशों को उनके शिष्य भूल चुके थे. अहिंसा और किसी से भी घृणा न करो का भाव बौध और जैन मतावलंबियों में से लुप्त हो रहा था.

राजाश्रय प्राप्त होने और बुद्ध तथा तीर्थंकर के मूल सिद्धांतों का खंडन करते हुए इन्होंने मूर्ति पूजा आरंभ कर दी तो उनके सामने सनातन परंपरा शत्रुवत लगने लगी क्योंकि सनातन में मूर्ति पूजन प्रचलित था.

स्वयं को सनातनी और वैदिक धर्म का अनुयायी मानकर चलना इतना सहज सरल नहीं रह गया था. सनातन की गौरवशाली परंपरा धीरे-धीरे मंद पड़ रही थी. वैदिक धर्म की रक्षा के लिए एक अवतार की बड़ी आवश्यकता थी. भगवान शिव ने धर्मरक्षा के लिए अवतार लेने का निर्णय किया.

दक्षिण भारत के एक शिवभक्त शिवगुरु नामपुद्रि के यहां विवाह के कई वर्षों बाद तक कोई संतान नहीं हुई. उनकी पत्नी विशिष्टा देवी ने कहा- हम तो शिवजी की शरण में हैं. क्यों न हम शिवजी को प्रसन्न कर उनसे पुत्र की याचना करें.

शिवगुरु को बात जंच गई. पति-पत्नी दोनों ने शिवजी की कठोर आराधना आरंभ की. लंबे समय तक उनकी आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने उन्हें स्वप्न में दर्शन दिए और कहा- वर मांगो.

शिवगुरु ने मांगा- प्रभु हमें एक दीर्घायु और सर्वज्ञ पुत्र प्रदान करें जो धर्मपरायण हो.

भगवान शंकर ने कहा- मैं तुम्हें एक वरदान दूंगा. या तो दीर्घायु पुत्र मांग लो या फिर सर्वज्ञ. दीर्घायु सर्वज्ञ नहीं होगा और सर्वज्ञ दीर्घायु नहीं हो सकता. बोलो तुम कैसा पुत्र चाहते हो?’

शिवगुरु ने सर्वज्ञ पुत्र की याचना की. भगवान शिव ने कहा- तुम्हें सर्वज्ञ पुत्र की प्राप्ति होगी. मैं स्वयं पुत्र रूप में तुम्हारे यहां अवतीर्ण होऊंगा.

शिवगुरू ने अपनी पत्नी को स्वप्न बताया. दोनों बड़े प्रसन्न थे. शिवजी का वरदान फलीभूत हुआ.

विशिष्टा देवी को गर्भ ठहरा और समय आने पर वैशाख शुक्ल पंचमी के दिन एक तेजस्वी, अति सुंदर, दिव्य कांतियुक्त बालक ने जन्म लिया.

बालक का जन्म शिवजी की कृपा से हुआ था इसलिए उसका नाम रखा गया-शंकर.

भोलेनाथ के अनन्य भक्त शिवगुरू के घर एक ऐसे बालक ने जन्मलिया है जिसके चेहरा एक विशिष्ट तेज से चमक रहा है. बात फैल गई और दूर-दूर से विद्वान बालक के दर्शन को आने लगे.

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