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उल्लू सैनिकों के रोज के कार्यक्रम को याद कर चुका था इसलिए ठीक समय पर हंसराज को ले आया था. उल्लू बोला- देखो मित्र, आपके स्वागत में मेरे सैनिक बिगुल बजा रहे हैं. उसके बाद मेरी सेना परेड और सलामी देकर आपको सम्मानित करेगी.
रोज की तरह परेड हुई और झंडे को सलामी दी गयी. हंस समझा सचमुच उसी के लिए यह सब हो रहा हैं. गदगद होकर कहा- धन्य हो मित्र. आप तो एक शूरवीर राजा की भांति ही राज कर रहे हो.
उल्लू ने हंसराज पर रौब डाला- मैंने अपने सैनिकों को आदेश दिया हैं कि जब तक मेरे परम मित्र राजा हंसराज मेरे अतिथि हैं, तब तक इसी प्रकार रोज बिगुल बजे व सैनिकों की परेड निकले.
उल्लू को पता था कि सैनिकों का यह दैनिक नियम है. हंस को उल्लू ने फल, अखरोट व बनफशा के फूल खिलाए, उनको वह पहले ही जमा कर चुका था. भोजन का महत्व नहीं रह गया. सैनिकों की परेड का जादू अपना काम कर चुका था.
हंसराज के दिल में उल्लू मित्र के लिए बहुत सम्मान पैदा हो चुका था.
उधर सैनिक टुकडी को वहां से कूच करने के आदेश मिल चुके थे. दूसरे दिन सैनिक अपना सामान समेटकर जाने लगे तो हंस ने कहा- मित्र, देखो आपके सैनिक आपकी आज्ञा लिए बिना कहीं जा रहे हैं.
उल्लू हडबडाकर बोला- किसी ने उन्हें ग़लत आदेश दिया होगा. मैं अभी रोकता हूं उन्हें. ऐसा कह वह ‘हूं हूं’ करने लगा. सैनिकों ने उल्लू का घुघुआना सुना व अपशकुन समझकर जाना स्थगित कर दिया.
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