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एक दिन हंस ने उल्लू को बताया कि वह वास्तव में हंसों का राजा हंसराज है.
हंस अपने मित्र को निमन्त्रण देकर अपने घर ले गया. शाही ठाठ थे. खाने के लिए कमल व नरगिस के फूलों के व्यंजन और जाने क्या-क्या दुर्लभ खाद्य थे, उल्लू को पता ही नहीं लगा.
बाद में सौंफ-इलाइची की जगह मोती पेश किए गए. उल्लू दंग रह गया. अब हंसराज उल्लू को महल में ले जाकर खिलाने-पिलाने लगा. रोज दावत उडती. उल्लू को डर होता कि किसी दिन साधारण उल्लू समझकर हंसराज उससे दोस्ती न तोड ले.
इसलिए स्वयं को हंसराज की बराबरी का बनाए रखने के लिए उसने झूठमूठ कह दिया कि वह भी उल्लूओं का राजा उल्लूक राज है. एक दिन उल्लू ने दुर्ग के भीतर होने वाली गतिविधियों को गौर से देखा और उसके दिमाग में एक युक्ति आई.
उसने दुर्ग की बातों को खूब ध्यान से समझा. सैनिकों के कार्यक्रम नोट किए. फिर वह चला हंस के पास. उसने हंस से कहा कि चलो आज मेरे साथ, मेरे किले में तुम्हें न्योता है. मैं कई बार आपका मेहमान बना हूं. मुझे भी सेवा का मौक़ा दो.
हंसराज उल्लू के साथ चला. पहाड की चोटी पर बने किले की ओर इशारा कर उल्लू बोला- वह मेरा किला है. हंस बडा प्रभावित हुआ. वे दोनों जब उल्लू के आवास वाले पेड पर उतरे तो किले के सैनिकों की परेड शुरू होने वाली थी. दो सैनिक बिगुल बजाने लगे.
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