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इच्छाएं अनंत हैं. सारी पूरी हों जरूरी नहीं लेकिन सारी अधूरी रह जाएं ऐसा भी नहीं. अधूरे और पूरे के बीच एक फर्क होता है आपका कर्म. एक बड़ी प्रेरक कथा है. इसे अंत तक पढ़ें. यदि पसंद आए तो अन्य मित्रों को पढ़ने के लिए प्रेरित भी करेंगे. फेसबुक पर इसे शेयर करके.
बात रूकनी नहीं चाहिए. प्रभु शरणम् एक धार्मिक-आधात्मिक अभियान है. इसे सभी तक पहुंचाने में सहयोग करें. चलिए पहले कथा सुनते हैं.
एक महात्माजी नदी के किनारे बैठकर सुबह-सुबह आवाज लगाया करते थे- जो चाहोगे वह पाओगे. यह उनका प्रतिदिन का कार्य था.
नदी पर स्नान के लिए आने वाले लोगों को लगता कि वृद्ध होने के कारण शायद महात्माजी पागल हो गए हैं. इसलिए बोलते रहते हैं.
सभी उनकी बात का खूब मजाक उड़ाते, कोई ध्यान न देता पर महात्माजी तो सारी बातें अनसुनी करके अपनी आवाज लगाते रहते.
एक दिन आदत के अनुसार महात्माजी सुबह-सुबह आवाज लगा रहे थे “जो चाहोगे सो पाओगे”, जो चाहोगे सो पाओगे”. वहां से गुजरते एक परदेसी ने उनकी आवाज सुनी तो ठिठका.
आवाज सुनकर वह महात्माजी के पास चला गया.
उस परसेदी ने पूछा- महाराज आपको मैंने ‘जो चाहोगे सो पाओगे’ कहते सुना. क्या आप मुझे वह दिला सकते है जो मैँ जो चाहता हूँ?
महात्माजी तो तैयार ही थे- “हाँ बेटा तुम जो कुछ भी चाहते हो मैँ उसे जरूर दिला सकता हूं. यही तो मैं रोज कहता हूं. तुम्हें जो चाहिए सब प्राप्त करा दूंगा बस मेरी एक शर्त है.
युवक ने कहा- महात्माजी अगर आपकी किसी शर्त मानने से मेरी मनोकामना पूरी हो सकती है तो मैं आपकी हर शर्त मानने को तैयार हूं. बस आप मेरी इ्च्छा पूरी होने का रास्ता बताएं. क्या करना होगा मुझे?
महात्माजी ने कहा- तुम्हें मेरी बात बिना कोई प्रश्न किए माननी होगी. जो कहूंगा उसे पूरी तरह मानना होगा. यदि कोई प्रश्न किया तो फिर मेरा मंत्र निष्फल हो जाएगा. अब बोलो क्या संभव है तुम्हारे लिए, ऐसा कर पाना.
युवक को तो हर हाल में अपनी इच्छा पूरी करानी थी. वह क्यों मना करता.
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