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भारत के विभिन्न क्षेत्रों में माता लक्ष्मी पूजा विभिन्न तिथियों पर होती है. जहां उत्तर भारत में दिवाली पर लक्ष्मीजी की विशेष पूजा होती हैं वहीं पूर्वी भारत खासकर बंगाल में धन की देवी लक्ष्मी की पूजा कोजागरी पूर्णिमा के दिन विशेष रूप से होती हैं.
कहते हैं आश्विन मास की पूर्णिमा की रात्रि में माता लक्ष्मी यह देखने के लिए निकलती हैं कि कौन जाग रहा है. जो भी भक्त जागकर माता लक्ष्मी का ध्यान करके उनकी प्रतीक्षा कर रहे होते हैं, माता उन्हें किसी न किसी रूप में धन प्रदान करती हैं.
लक्ष्मीजी के “को जागर्ति” कहने के कारण इसका नाम कोजागर पड़ा है. नवरात्रि के बाद पड़ने वाली पूर्णिमा के दिन कोजागरी लक्ष्मी पूजा होती है.
एक ज्योतिषीय मान्यता कहती है जिनकी कुंडली में धन का योग नहीं होता उन पर भी लक्ष्मीजी शरत पूर्णिमा या कोजागरा पूर्णिमा को अपनी कृपा बरसाती हैं और उन्हें धन-धान्य से युक्त करती हैं.
इस व्रत में ऐरावत पर सवार देवराज इंद्र और महालक्ष्मी का पूजन करके उपवास करना चाहिए. रात्रि में घी से भरे सौ दीपक या जितना भी संभव हो उतने दीपक जलाकर मंदिरों, बाग-बगीचों, तुलसी और पीपल वृक्ष के नीचे और घर में रखना चाहिए.
सुगंधित धूप और पुष्प से माता की पूजा करनी चाहिए. अगले दिन प्रातःकाल स्नानआदि करके, इंद्र का पूजन करके ब्राह्मणों को शक्कर में बनी खीर भोजन कराकर, सामर्थ्यअनुसार दक्षिणा देनी चाहिए.
कोजागर पूर्णिमा के दिन श्रीसूक्त, लक्ष्मीस्तोत्र का पाठ करना या कराना चाहिए. फिर कमलगट्टा, बेल या पंचमेवा अथवा खीर से जितना जप किया है उसका दशांश हवन कर देना चाहिए.
कोजागरा के दिन दूध, शक्कर और उनसे बनी खीर का विशेष महत्व कहा गया है. इनके सेवन से चंद्रमा के दोष भी दूर होते हैं.
शाम को चन्द्रोदय होने पर चांदी, सोने या मिट्टी के दीपक जलाने के बाद खीर को चन्द्रमा की चांदनी में रख देना चाहिए. जब रात्रि का एक पहर यानी करीब तीन घंटे बीत जाएं तो यह भोग लक्ष्मीजी को अर्पित कर देना चाहिए.
कोजागरी व्रत की कथा परिजनों के साथ या समूह में सुननी चाहिए. कोजागरी व्रत की कई कथाएं कही गई है. उनमें से एक प्रचलित कथा आपके लिए लेकर आए हैं.
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