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लंका विजय कर रामचंद्रजी अयोध्या लौटे तो उनके आने की खुशी में प्रजा पूरे अयोध्या में जगह-जगह समारोह कर रही थी. रामभक्त आगे बढ़कर अपनी जिम्मेदारियां ले रहे थे. किसी ने नगर को सजाने की जिम्मेदारी ली तो कोई साफ-सफाई और भोजन का प्रबंध देख रहा था.
सारे देवगण, ऋषि-मुनि, राजा आदि को भी निमंत्रण दिया गया था. इसलिए स्वागत और अतिथियों के ठहराने का की बड़ा प्रबंध था जिसकी जिम्मेदारी प्रमुख लोगों को दी गई थी. सारे रामभक्तों ने आपस में काम बांट लिए.
हनुमानजी वानरराज सुग्रीव द्वारा सौंपे कुछ कार्यों में फंसे थे. कार्य निपटाकर जब तक श्रीराम की सेवा में लौटे तब सारे कामों का बंटवारा हो चुका था. हनुमानजी भगवान राम के सामने पहुंचे और हाथ जोड़ कर खड़े हो गए. भगवान से उन्होंने अपने योग्य कार्य मांगा.
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