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विश्वकर्मा ने गणपति वंदना के बाद उनके सामने भेंट स्वरुप कुछ आयुध रखे. ये आयुध थे- एक तीखा अंकुश, पाश और पद्म.
आयुध पाकर गणपति प्रसन्नता हुए. आयुधों से सबसे सुसज्जित होकर सबसे पहले श्रीगणेश ने खेल-खेल में ही दैत्य वृकासुर का संहार कर दिया.
देवताओं ने गणपति को प्रसन्न किया और उनसे सिंधुरासुर के अत्याचार से मुक्ति दिलाने की विनती की.
गणपति सेना लेकर सिंधुरासुर से युद्ध को चले. सिंधुरासुर को पता चला कि एक बालक चूहे पर सवार होकर उससे युद्ध करने आ रहा है तो वह खूब हंसा.
उसने गणपति की खिल्ली उड़ाई. गणपति ने क्रोधित होकर अपना रूप कई सौ गुना बढ़ाया और विश्वकर्माजी द्वारा प्रदत्त आयुधों से भीषण प्रहार किया.
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