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वनगमन के लिये ज्यादा वक्त नहीं था. जो भी समय मिला भगवान ने यह कार्य निबटा दिया और अपने पास का सारा धन लोगों में बांट दिया. अब वे वन जाने के लिये तैयार थे. ठीक उसी समय उनके सामने एक बेहद दुबला पतला, कमजोर सा गरीब ब्राह्मण आन पहुंचा.
यह त्रिजट था. त्रिजट अयोध्या के ही एक गांव में रहता था. गर्ग गोत्र के इस गरीब ब्राह्मण के पास पेट पालने का कोई साधन न था. खाने पहनने के लाले पड़े रहते. भूखे रहने के कारण पेट पीठ सट गये थे और भिक्षा मांगने जाना भी मुश्किल हो रहा था.
एक दिन त्रिजट की पत्नी ने कहा, स्वामी आप भगवान श्री रामचंद्रजी से मिलिये वे बड़े धयालु और धर्म के मानने वाले हैं, गरीब ब्राह्मण का दुखड़ा सुनकर भोजन भर का कोई प्रबंध जरूर कर देंगे. पत्नी की बात मान कर त्रिजट भगवान राम के पास आया था जो अब वन जाने को तैयार खड़े थे.
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