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दूसरों की बात कौन करे, लोग अपनों से भी प्रेम करना भूलते जा रहे हैं. यह सब अब मेरे बर्दाश्त के बाहर हो चुका है. शांति और विश्वास की तरह अब मेरा मन भी इस दुनिया में नहीं लगता.

मैं भी अब इस दुनिया से विदा लेता हूं. इतना कहकर प्रेम के दीपक ने चौथे दीपक की ओर देखा, डूबते मन से हाथ हिलाया और बुझ गया.

तीसरे दीपक के बुझने के बाद एक छोटा मासूम बच्चा वहां आया. वह शांति, विश्वास और प्रेम के दीपक को बुझा हुआ देखकर रोने लगा.

वह रोते हुए कह रहा था- तुम इतनी जल्दी क्यों बुझ गए. मैं तो इस दुनिया में तुम्हारे भरोसे ही आया था. तुम्हें तो जीवनभर मेरे साथ चलना था. अब मुझे राह कौन दिखाएगा?

तभी चौथे दीये ने कहा- प्यारे बच्चे निराश न हो. मैं आशा का दीपक हूँ और जब तक मैं जल रहा हूँ, हम दूसरे दीपकों को कोशिश करके फिर से जला सकते हैं.
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