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अपनी इस उपेक्षा से दुखी कामधेनु ने तब दूसरी गायों को सुनाते हुये कहा था- अगर मेरी संतानें इस पर कृपा न करें तो यह संतानहीन ही रह जाएगा. राजन, आपको बचपन से सिखाया था कि गौवंश दिखे तो उनको राह देते हुए दायें होकर प्रणाम करना चाहिए.
गौ अपराध, कामधेनु का श्राप और गुरु आज्ञा का पालन न करने से आपको संतान संकट झेलना पड़ेगा. दिलीप रोने लगे- बोले वंश कैसे चलेगा. कोई उपाय बताइए इस शाप मुक्ति का. गुरु वशिष्ठ बोले- गौ अपराध का प्रायश्चित गौ सेवा ही हो सकती है.
वशिष्ठ ने कहा, महाराज, अब कुछ समय तक आश्रम में रुक कर यहां कामधेनु की पुत्री होम धेनु नंदिनी की सेवा कीजिये. महाराज ने बात मान ली. महाराज का साथ देने महारानी भी वहां आ गयीं. दोनों मिलकर नंदिनी की सेवा में लग गये.
वे सुबह नंदिनी की पूजा करतीं, दिलीप नंदिनी को चराने जंगल ले जाते, उसके पीछे पीछे चलते, कीट, पतंगे, मक्खी, मच्छर भगाते, हाथों से हरा चारा खिलाते. साफ पानी पिलाते और शाम को उनकी पूजा कर घी का दीपक जलाते.
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