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पद्मनाभ ने ब्राह्मण को प्रणाम कर कहा- मैं ही पद्मनाभ हूं. मेरे लिए क्या आदेश है. ब्राह्मण ने कहा- आप भगवान सूर्य के परमप्रिय हैं. ऐसी कोई बात बताइए जो आपने सूर्य में देखी हो.

पद्मनाभ बोला- एक दिन भगवन संसार को अपने तेज से तपा रहे थे. उसी समय सूर्य के समान तेज वाला एक व्यक्ति दिखाई दिया जो अपने तेज से अंधकार को चीर रहा था.

भगवान भास्कर ने अपनी दोनों भुजाएं उसके स्वागत में फैला दीं. वह तेज उनकी किरणों में समाकर एकाकार हो गया. मैंने भगवान से पूछा कि यह दूसरे सूर्य कौन थे?

सूर्यदेव ने कहा- वह एक सिद्ध मुनि थे. जीवन की सभी आसक्तियों का त्यागकर वह सदा ध्यानमग्न रहे और महादेव की आराधना करते रहे. उसने कभी भी ऐसे अन्न का एक दाना भी न लिया था जिसे प्राप्त करने में किसी भी शील वृत्ति का हनन हुआ हो.

ऐसे तपस्वी देवतुल्य और देवताओं से भी श्रेष्ठ हो जाते हैं. ऐसे लोगों को उत्तम गति प्राप्त होती है और मैं स्वयं सहर्ष उनको स्वीकार करके स्वयं को धन्य करता हूं.

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