एक शाम महर्षि महातपा ने राजा प्रजापाल के साथ धर्मचर्चा आरंभ करते हुये धर्म के जन्म की कथा सुनानी शुरू की. परमात्मा के मन में आया कि प्रजा की रचना की जाये. उनके लिये यह कठिन तो न था. फिर उन्होंने सोचा प्रजाओं की रक्षा करने के लिये क्या उपाय किया जाये.
वे इस बात को लेकर गहरे सोच में डूब गये. तभी उनके शरीर के दाहिने हिस्से से एक पुरुष प्रकट हुआ. इस पुरुष के कानों में उजले कुंडल थे, गले में श्वेत फूलों की माला थी और उसने चंदन सरीखी किसी उजली वस्तु का लेप शरीर पर कर रखा था.
उसके चार पैर थे और चेहरा काफी हद तक बैल की तरह था. उसे देखकर परमपिता ने कहा जाओ तुम प्रजाओं की रक्षा करो मेरी तरफ से तुम जगत में इनके प्रधान हुए. परमपिता की आज्ञा से वह पुरुष वैसा ही हो गया और उसने यह जिम्मेदारी संभाल ली.
सतयुग में इस पुरुष के सत्य, शौच, तप और दान ये चार पैर थे. त्रेता में तीन, द्वापर में दो और अब कलयुग में यह एक पैर से ही प्रजा का पालन करता है. द्रव्य, गुण, क्रिया और जाति नाम के उसके चार पैर थे.
आदि और अंत नामक उसके दो सिर थे जिस पर संहिता, पद और क्रम नामक तीन सींग उगे थे. उसके सात हाथ भी थे. ब्राह्मणों के लिए यज्ञ, अध्ययन, अध्यापन क्षत्रियों के लिये दान, भजन और शस्त्र संचालन, वैश्यों के लिये दो और शूद्रों के लिये सेवा भाव का एक रूप बनाया.
एक बार धर्म बहुत क्रोधित हो गया. यह तब की बात है जब चंद्रमा ने अपने भाई वृहस्पति की पत्नी को ग्रहण करने का मन बना लिया. माना वृहस्पति के पत्नी तारा बहुत सुंदर थीं पर चंद्रमा का यह कृत्य तो निंदा करने लायक ही था.
धर्म इस बात से इस तरह क्षुब्ध और दुःखी हुआ कि वह घने जंगलों को चला गया. धर्म के इस तरह लोप हो जाने से देवता हों या दानव किसी का कोई धर्म ईमान नहीं बचा. सब निरंकुश हो गये.
चंद्रमा ने तारा का बलात अपहरण करके सारी मर्यादाएं छिन्न-भिन्न की थीं. देवता एक दूसरे से द्वेष रखने लगे और वे दानवों और असुर देवताओं के चक्कर काटने लगे ताकि उन्हें समय मिलते ही बर्बाद किया जा सके.
देव दानव के इस व्यापक युद्ध छिड़ने की आशंका तथा हर और अधर्म के बोलबाला हो जाने के पीछे महज एक स्त्री और उसकी चाहत है, जब यह बात नारद जी को पता चली तो वे बहुत हंसे और जा कर अपने पिता ब्रह्मा जी को बतायी.
भीषण लड़ाई छिड़ जाने में की आशंका को समझते हुए ब्रह्मा हंस पर बैठे और वहां पहुंचे जहां देवता और दानव सब आपस में भिड़ने को आतुर थे. ब्रह्माजी ने यहां आकर पूछा आप सभी आपस में लड़ने भिड़ने पर क्यों उतारू हैं.
सबने कहा कि इस लड़ाई झगड़े की जड़ असल में चंद्रमा है. वह वृहस्पति की पत्नी को हर ले गया और उससे पैदा बच्चे को कहता है कि यह मेरा है. इन सबके चलते धर्म और बुद्धि विवेक का लोप हो गया और आखिरकार हम सब यहां युद्ध के लिये जुटे हैं.
ब्रह्मा जी ने सबको साथ में लिया और वहां गये जहां घने जंगल में धर्म अपने चार पैरों पर विचर रहे थे. ब्रह्मा बोले यह मेरा पहला पुत्र धर्म है जो चंद्रमा की हरकत से दुःखी हो कर यहां आ गया है. अब तुम सब इसे संतुष्ट करो, मनाओ.
देवताओं दानवों सबने मिलकर धर्म की स्तुति की, कहा आप ही जगत के रक्षक हो, आपके न रहने पर हम अविवेकी, भ्रष्ट और मूर्ख हो गये थे. ऐसे में जगत जल्द ही नष्ट हो सकता था. अब हमें ज्ञान दो हम आपके रास्ते पर चलें सन्मार्ग दिखाओ.
धर्म अपनी स्तुति सुन प्रसन्न हुए तो सबकी बुद्धि निर्मल हो गयी. धर्म ने एक भरपूर नजर देवताओं पर डाली तो उन्हें सन्मार्ग मिल गया, असुरों की भी वैसी ही स्थिति हुई. सारा अज्ञान जाता रहा.
सबने मिल कर धर्म से कहा, बहुत हुआ अब आप अपने स्थान पर चलिये यह जंगल जिसमें आप बहुत समय तक रहे धर्म अरण्य के नाम से विख्यात होगा. इस बीच ब्रह्माजी अंतर्धान हो गए.
बैल के रूप में धर्म ने सबसे यह कहा कि जो लोग श्राद्ध के दिनों में त्रयोदशी के दिन मेरे इस महात्म्य का पाठ करेंगे, सुनेंगे उनकी बुद्धि निर्मल होगी. यह कहकर वे भी अपने लोक चले गए.
संकलनः सीमा श्रीवास्तव
संपादनः राजन प्रकाश