[sc:fb]
भरद्वाज ने अपने बेटे पायु को बुलाकर कहा कि इन दोनों राजाओं को ऐसा बना दो कि इनका दुश्मन इन्हें कभी हरा न पाये. मैं भी इंद्र देव से भी इन्हें सहायता देने के लिए प्रार्थना करूंगा.
अध्यावर्ती और प्रस्तोक अपने-अपने राज्यों में लौट आये पर वे बहुत बेचैन और खिन्न थे. असुरों ने जिस तरह से उनकी इज्जत धूल में मिला दी थी वह उनके दिल में तीर सा चुभ रहा था.
दोनों राजाओं को यह खटका भी लग रहता था कि असुर दुबारा आक्रमण न कर दे और इससे भी ज्यादा तबाही मचाकर बचा खुचा धन न लूट ले जाये. गुरु महर्षि भरद्वाज की बात पर उन्हें विश्वास था, पर चिंता दूर नहीं हो पा रही थी.
एक दिन इसी बारे में दोनों राजा मिल कर आपस में विचार कर रहे थे कि उन्हें एक ऋषि आते दिख पड़े. वह पायु ऋषि थे. प्रस्तोक प्रसन्न हुये. उनके मन में अपने घर पहली बार आये कुलगुरु पुत्र को भेंट देने की सूझी.
शेष अगले पेज पर. नीचे पेज नंबर पर क्लिक करें.