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संन्यासी ने कहा- मैंने तुम्हें कोई उपदेश दिया ही कहां था? पिछली बार मैंने देखा कि तुम्हारे अंदर निर्जीवों तक के लिए दया है लेकिन धन का मोह बाधा कर रहा था. वह मोह तुम्हें असत्य की ओर ले जाता था हालांकि तुम्हें ग्लानि भी होती थी.

तुम्हारा हृदय तो सन्यास के लिए ऊर्वर था. बीज पहले से ही पड़े थे, मैंने तो बस बीजों में लग रही घुन के बारे में बता दिया. तुमने घुन हटा दी और फिर चमत्कार हो गया. संन्यास संसार को छोड़नकर ही नहीं प्राप्त होता. अवगुणों का त्याग भी संन्यास है.

हम सब में उस व्यक्ति की तरह सदगुण हैं. जरूरत है उन्हें निखारने की. निखारने वाले की. अपने काम करने के तरीके में थोड़ा बदलाव करके आप चमत्कार कर सकते हैं.

एक बदलाव आजमाइए- हर किसी से प्रेम से बोलें. उनसे ज्यादा मीठा बोलेंगे जिनपर आपका शासन है. आपमें जो मधुरता आ जाएगी वह जीवन बदल देगी. मेरी सलाह पर 15 दिन के लिए कम से कम इसे आजमाकर देखिए और फिर मुझे बताइए.

संकलन व संपादनः राजन प्रकाश
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