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कर्माबाईजी रोज सुबह उठतीं और सबसे पहले खिचड़ी प्रसाद बनातीं. बिहारीजी भी सुबह-सबेरे दौड़े आते. आते ही कहते माता जल्दी से मेरा प्रिय खिचड़ी भोग लाओ.

प्रतिदिन का यही क्रम बन गया. भगवान सुबह-सुबह आते, भोग लगाते और फिर चले जाते. एक बार एक साधु कर्माबाईजी के पास आया.

उसने सुबह-सुबह सबसे पहले खिचड़ी बनाते देखा. उसने नाराज होकर कहा-सर्वप्रथम नहाधोकर पूजा-पाठ करनी चाहिए. लेकिन आपको तो पेट की चिंता सताने लगती है.

कर्माबाईजी बोलीं- क्यां करूं, संसार जिस भगवान की पूजा-अर्चना कर रही होती है, वही सुबह-सुबह भूखे आ जाते हैं. उनके लिए ही तो खिचड़ी प्रसाद बनाती हूं.

साधु ने सोचा कि शायद कर्माबाई की बुद्धि फिर गई है. जैसे भगवान इसके बनाए खिचड़ी प्रसाद के लिए भूखे रह जाते हैं.

उसने कहा कि तुम भगवान को अशुद्ध कर रही हो. सुबह स्नान के बाद पहले रसोई की सफाई करो. फिर भगवान के लिए भोग बनाओ.

अगले दिन कर्माबाई जी ने ऐसा ही किया. साधु-संत की बात थी, अवहेलना कैसे करतीं.

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जैसे ही सुबह हुई भगवान आये और बोले माँ में आ गया, खिचड़ी भोग लाओ.

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