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संत ने कहा- जैसे कोई पिता अपने धन से नहीं अपितु योग्य संतान के कारण समृद्ध और सुखी अनुभव करता है वही बात राजा और प्रजा के बीच होनी चाहिए.

यदि किसी पिता की संतान अयोग्य हो तो वह उसके द्वारा जमा किए गए अनंत धन को नष्ट कर देती है और संतान योग्य हो तो सम्मान के साथ पिता के सुख के लिए धन जमा कर सकती है.

प्रजा तो राजा के लिए संतान जैसी होती है. यदि प्रजा प्रसन्न है तो राजा समर्थवान है. तुम जिन पड़ोसी राजाओं से सामर्थ्य में बड़ा होने के लिए अपनी संतान पर जुल्म कर रहे हो वही प्रजा एक दिन विद्रोह कर देगी. तुम्हारे शत्रुओं को बाहर से आने की आवश्यकता कहां होगी.

यह कथा समझाती है कि जिस धन को येन-केन-प्रकारेण धन जमा करने की सनक में हम निरंतर गिरते चले जाते हैं.

सोचिए ईश्वर के सामने क्या मुख दिखाएंगे. आप चाहे जितना भी कमाते हों, उसका एक छोटा सा ही हिस्सा सही लेकिन रखें जरूर परोपकार के लिए, ईश्वर कार्य के लिए.

जमा ही करना है तो प्रभु सुमिरन का धन जमा करिए. इस लोक और उस लोक दोनों में बस वही साथ निभाएगा. वही पार लगाएगा.

संकलन व संपादनः राजन प्रकाश
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