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रावण को बाली की मृत्यु की बात जानकर आश्चर्य हुआ. उसने सोचा कि अंगद किष्किंधा का युवराज है. यदि उसे फोड़ लिया जाए तो वानर सेना में फूट हो जाएगी.
अंगद को धिक्कारते हुए कहा रावण ने कहा- अपने पिता का वध करने वाले की सेवा करते तुम्हें लज्जा नहीं आती.
तुम मेरी तरफ आ जाओ. मेरे मित्र और अपने पिता का वघ करने वाले से प्रतिशोध लो.
अंगद रावण की चाल समझ गए. वह बोले- मुझे लज्जा की बात कहने वाले राक्षसराज, क्या तुम वही रावण हो जिसे राजा बलि ने पालाक लोक में अपनी घुड़साल में बांधकर रखा था.
या वह रावण हो जिसे हैहयराज अर्जुन ने बंदी बना लिया था तब पुलस्त्य मुनि ने याचना करके उसे मुक्त कराया था.
या वह रावण हो जिसकी धृष्टता का दंड देने के लिए मेरे पिता अपनी बगल में दबाए घूमते रहे थे और उसने मित्रता की दुहाई देकर अपनी जान बचाई थी.
अंगद ने रावण की सभा में उसके अपमानजनक अतीत का स्मरण कराकर रावण का मनोबल तोड़ा. उन्होंने कुशल दूत की क्षमता का परिचय दिया.
रावण खिसियाकर बोला- जिस रावण को तुम देख रहे हो, उसने कैलाश पर्वत उठा लिया था. इंद्र, वरूण, कुबेर, यम, अग्नि आदि जिसकी चाकरी करते हैं. तेरी ओर तेरे राम की मेरे सामने क्या बिसात!
अंगद बौखला गए. मेरे प्रभु की शक्ति की तो रहने दो. अगर तुम या तुम्हारे महाबली जिनके दम पर तुम श्रीराम से युद्ध करने की सोच रहे हो.
उनमें से कोई प्रभु के इस सेवक के मात्र पैर हिलाकर दिखा दे तो हम अपनी पराजय मान कर लंका से वापस चले जाएंगे.
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अति ज्ञानवर्धधक और प्रेरक कथा ।
आपके शुभ वचनों के लिए हृदय से कोटि-कोटि आभार.
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