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कैकेयी कुशल योद्धा थीं. किसी भी वीर योद्धा को यह कैसे सुहाता कि राजा को अपना मुकुट छोड़कर आना पड़े. कैकेयी को बहुत दुख था कि रघुकुल का मुकुट उनके बदले रख छोड़ा गया है.
वह राजमुकुट की वापसी की चिंता में रहतीं थीं. जब श्रीरामजी के राजतिलक का समय आया तब दशरथजी व कैकयी को मुकुट को लेकर चर्चा हुई. यह बात तो केवल यही दोनों जानते थे.
कैकेयी ने रघुकुल की आन को वापस लाने के लिए श्रीराम के वनवास का कलंक अपने ऊपर ले लिया और श्रीराम को वन भिजवाया. उन्होंने श्रीराम से कहा भी था कि बाली से मुकुट वापस लेकर आना है.
श्रीरामजी ने जब बाली को मारकर गिरा दिया. उसके बाद उनका बाली के साथ संवाद होने लगा. प्रभु ने अपना परिचय देकर बाली से अपने कुल के शान मुकुट के बारे में पूछा था.
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