[sc:fb]
तब सूर्यनारायण ने कहा- हे कुमार कार्तिक! मुझे अपनी संतान यम, यमी, शनि या तप्ती इतने प्रिय नहीं हैं जितने प्रिय ये दो व्यक्ति हैं जिन्हें आपने अभी-अभी देखा था.
इनमें से पहले व्यक्ति वह हैं जो अयोध्या में लोगों को नियमपूर्वक भावविभोर होकर हरिचर्चा सुनाते थे. भगवन्नाम की कथा करने वाले व्यास थे. हरिकथा से लोगों के पाप दूर होते हैं, अज्ञान दूर होता है.
मैं तो प्रकाश करता हूं तब रात्रि का अन्धकार दूर होता है मगर ये कथाकार जब कथा करते हैं तब हृदय का अन्धकार दूर होता है. इसलिए मैं उनका इतना स्वागत करता हूँ.
शेष अगले पेज पर. नीचे पेज नंबर पर क्लिक करें.