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रावण ने पूजा-आराधना करके भगवान शिव को प्रसन्न कर लिया था. घोर तप शिवजी से उसने ऐसे-ऐसे वरदान प्राप्त किए थे जो देवों, गन्धर्वों और ॠषियों के लिए भी संभव नहीं थे.

महादेव से मिले वरदानों के कारण रावण में अतुलित शक्ति आ गई थी. भगवान शिव की कृपा से प्राप्त शक्तियों के दम पर उसने तीनों लोकों को वश में कर लिया था. इससे देवता बड़े चिंतित थे.

एक बार रावण कैलाश पर्वत पर महादेव के दर्शन करने आया. वहां मुख्य द्वार पर शिव के प्रिय गण नन्दी पहरे पर तैनात थे.

नंदी का मुख वानर जैसा था. रावण ने नंदी के सामने अपनी वीरता का बखान किया फिर नंदी का उपहास करते हुए उसने नंदी से पूछा कि आपका मुख वानर जैसा क्यों है?

नंदी ने शिवभक्त रावण की बात का बुरा न मानते हुए कहा- भैया! जैसे आप शिवजी के उपासक हो, उसी तरह मैं भी हूं. मैंने महादेव से ऐसा ही रूप मांगा है.

नंदी ने बताया- महादेव प्रसन्न होकर मुझे अपना रूप दे रहे थे, लेकिन मैंने उनसे वानर का मुख मांगा. प्रभु ने मेरी इच्छा रखकर यह स्वरूप दिया है.
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