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इससे पहले कि शिकारी कुछ बोलता, उतथ्य ने उसे जीवहत्या के कारण होने वाले पाप के बारे में बताने लगा. उसके उपदेश से शिकारी की मति सुधर गई और उसने हत्याकर्म त्यागने का वचन देकर चला गया.

शिकारी के जाते ही अचानक घायल सूअर से भगवती दुर्गा प्रकट हो गईं. देवी ने कहा- मैं तुम्हारी दयालुता और सत्य बोलने के संकल्प से प्रसन्न हूं. मैं तुम्हारी परीक्षा ले रही थी.

तुमने हृदय से मनन किया है जो अध्ययन के ज्ञान से ऊपर है. मेरे आशीर्वाद से आज से तुम सभी शास्त्रों में पारंगत हो जाओगे और तुम्हारी विद्वता का संसार में सम्मान होगा.

वरदान देकर देवी अंतर्धान हो गई. देवी की कृपा से उतथ्य शापमुक्त हो गए और बाल्मीकि की तरह उतथ्य मुनि भी एक महान कवि बन गए.

कहते हैं तर्कशास्त्र की उत्पत्ति और उसके विकास में उतथ्य का ही सर्वाधिक योगदान है.

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