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रास्ते भर लोग उससे मिलते रहे. उसका हाल-चाल पूछते रहे. वह उनका हाल-चाल पूछता रहा. समाज में मिल रहे इस सम्मान से उसका मित्र चकित था.
उसे लगा कि शायद उसके मित्र ने भी बहुत धन कमा लिया है इसलिए उसकी बड़ी पूछ है लेकिन जब घर पहुंचा तो बहुत साधारण रहन-सहन था.
नास्तिक ने अपने मित्र से कहा- तुम्हारे त्याग की जितनी प्रशंसा की जाए, कम है. भगवान की भक्ति में सारा ऐशो-आराम त्याग दिया. तुम खुश कैसे रह लेते हो?
ईश्वरभक्त मित्र ने उत्तर दिया- मित्र! मैं अपने जीवन से बहुत संतुष्ट हूं. लेकिन तुम्हारा त्याग मुझसे ज्यादा बड़ा है.
तुमने तो संसार का ऐशो-आराम पाने के लिए ईश्वर का ही त्याग कर दिया. तुम अपने जीवन से खुश तो हो न?
उसकी आंखें खुली रह गईं. उसे अपने असंतोष और कष्ट का कारण समझ में आने लगा. जीवन की सारी उलझनें बताईं और जीवन की दिशा बदलेगा का प्रण किया.
ईश्वर की परम सत्ता है. बहुत से लोग कहते हैं कि ईश्वर है कहां! जिसका भय हमें अनुचित करने से रोककर अच्छा इंसान बनने को प्रेरित करता हो, उसकी मौजदूगी का और क्या प्रमाण चाहिए?
संकलन व प्रबंधन: प्रभु शरणम् मंडली
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