[sc:fb]
पोथी में लिखा था- “अतिविस्तार विस्तीर्णं तद् भवेत् न चिरायुषम्” यानी अधिक फैली हुई चीज की उम्र कम होती है।
उसे लगा कि वह रोटी खा लेता तो उसकी उम्र घट जाने का खतरा था। वह भी भूखा ही उठ गया। तीसरे को खाने के लिए ‘बड़ा’ दिया गया। उसमें बीच में छेद तो होता ही है।
उसे श्लोक याद आया- “छिद्रेष्वनर्था बहुली भवन्ति।”
इसका तात्पर्य है- छिद्र यानी भेद खुल जाने पर अनर्थ हो सकता है। यह बात तो उसे मालूम न थी। उसने सोचा छेद वाली वस्तु से अनर्थ होता है। उसने भोजन नहीं किया।
लोग उनके ज्ञान पर हंस रहे थे पर उन्हें लग रहा था कि वे उनकी प्रशंसा कर रहे हैं। अब वे तीनों भूखे-प्यासे ही अपने-अपने नगर की ओर रवाना हुए।
यह कहानी सुनाने के बाद स्वर्ण सिद्धि ने कहा, ‘‘पोथियों के ज्ञान के साथ यदि दुनियादारी का ज्ञान न हो तो इंसान आफत में पड़ जाता है।
इसीलिए शास्त्रों का ज्ञान होने का अर्थ परमज्ञानी हो जाना नहीं होता।
संकलन व संपादनः राजन प्रकाश
पौराणिक कथाएँ, व्रत त्यौहार की कथाएँ, जीवन को बदलने वाली कथाएं, चालीसा संग्रह, भजन व मंत्र, गीता ज्ञान-अमृत, श्रीराम शलाका प्रश्नावली, व्रत त्यौहार कैलेंडर इत्यादि पढ़ने के हमारा लोकप्रिय ऐप्प “प्रभु शरणम् मोबाइल ऐप्प” डाउनलोड करें.
Android मोबाइल ऐप्प के लिए क्लिक करें
iOS मोबाइल ऐप्प के लिए क्लिक करें
प्रभु शरणं के पोस्ट की सूचना WhatsApp से चाहते हैं तो अपने मोबाइल में हमारा नंबर 9871507036 Prabhu Sharnam के नाम से save कर लें। फिर SEND लिखकर हमें उस नंबर पर whatsapp कर दें.
जल्दी ही आपको हर पोस्ट की सूचना whatsapp से मिलने लगेगी। इस लाइऩ के नीचे फेसबुकपेज का लिंक है. इसे लाइक कर लें ताकि आपको पोस्ट मिलती रहे.
[sc:fb]
ये भी पढ़ें-
“अवसर”, पहचान लें तो लाख का नहीं तो खाक का.
प्रेम न बाड़ी उपजै, प्रेम न हाट बिकाय- पुण्य का कारोबारी चार रोटियों का मोल न दे पाया