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यह बात गधे के मालिक धोबी को पता चली। धोबी हाथ में डण्डा लिए आया। चारों वहाँ से भागे। कुछ ही दूर गए होंगे कि रास्ते में एक नदी पड़ गई।

सवाल था कि नदी पार कैसे की जाए। अभी वे सोच-विचार ही कर रहे थे कि नदी में बहकर आता हुआ पलाश का एक पत्ता दीख गया।

पत्ते को देखकर एक को पोथी में लिखी बात याद आ गई। “आगमिष्यति यत्पत्रं तत्पारं तारयिष्यति।” इसका अर्थ है कि आने वाला पत्र ही पार उतारेगा।

अब किताब की बात गलत तो हो नहीं सकती थी। एक ने आव देखा न ताव, कूदकर उसी पत्ते पर सवार हो गया। तैरना आता नहीं था तो वह डूबने लगा। एक ने उसको चोटी से पकड़ लिया।

चोटी पकड़कर संभालना कठिन लग रहा था। वह समझ गया कि अब इसे बचाया नहीं जा सकता। उसी समय एक दूसरे को किताब में पढ़ी एक बात याद आ गयी।

उसने पढ़ा था- यदि सब कुछ हाथ से जा रहा हो तो, समझदार लोग जितना संभव है उतना बचा लेते हैं।

उसने सोचा साथी का पूरा शरीर चला जाए, उससे अच्छा है कि इसका सिर बचा लिया जाए।

उसने डूबते हुए साथी का सिर काट कर कुछ बचा लिया।

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