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वेदशिरा ने साफ-साफ कह दिया कि मेरे आश्रम में रहकर तपस्या करने की सोची भी तो ठीक न होगा. किसी और स्थान पर जाकर तपस्या करो. वेदशिरा की यह दो टूक सुनकर अश्वशिरा भी गरम हो गए.

अश्वशिरा ने कहा- मुनिवर सभी भूमि महाविष्णु की है न तुम्हारी न मेरी. इस धरती पर जाने कितने मुनियों ने तप अनुष्ठान किए पर उन्होंने कभी नहीं टोका. तुम बेवजह सांप की तरह फुफकारने लगे हो. जाओ सदा के लिए सर्प बन जाओ और हमेशा गरुड से भयभीत रहो.

शापित वेदशिरा क्रोध से जलने लगे- छोटी गलती पर बड़ा दंड़ देने को उतारू अश्वशिरा तुम्हारी नीयत ही खोटी है. अपना काम कैसे बन जाए हमेशा यही सोचते रहते हो. दूसरों की संपत्ति पर नजर गड़ाए कौए की तरह डोलते हो. जाओ कौआ हो जाओ.

दो विष्णुभक्तों के बीच बात बढती देख भगवान विष्णु स्वयं प्रकट हो गए. उनके प्रकट होने से दोनों का क्रोध शांत हुआ. एक दूसरे को शाप देने के बाद दोनों थोड़े लज्जित भी थे.

श्रीहरि ने कहा- तुम दोनों मेरे वैसे प्रिय भक्त हो जैसे किसी इंसान की दो बाहें.मैं अपना वचन तो एक बार झूठा कर दूं पर भक्त का वचन खाली जाए यह नहीं हो सकता इसलिए वेदशिरा को सांप और अश्वशिरा को कौआ बनना ही पड़ेगा.
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