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राजा बिना कोई सूचना दिए रानी और उनकी सखी के मध्य वार्तालाप में विघ्न डालने अंतरंग महल में चले गए थे इसीलिए रानी ने भोज को मूर्खराज कहकर सम्बोधित किया था.
विद्वतजन कहते हैं कि जब दो विद्वान् लोग आपस में बात कर रहे हों तो तीसरे व्यक्ति को बिना कारण उसमें हस्तक्षेप नही करना चाहिए. हस्तक्षेप से वह अपने अपमान को आमंत्रित करता है.
हम बच्चों से कहते हैं कि बड़ों के बीच बात में नहीं टोकते. उन्हें साधारण तरीके से समझाने के स्थान पर इस कथा के माध्यम से समझाएं तो शायद बात बच्चे के मन में बिठाने में कुछ सहायक हो.
संकलनः मनोज त्रिपाठी
संपादनः राजन प्रकाश
यह प्रेरक कथा मनोज त्रिपाठी जी ने बनारस से भेजी. मनोजजी आध्यात्मिक चर्चा में योगदान करते हैं और इनकी भेजी कथाएं कई बार पहले भी प्रभु शरणम् में प्रकाशित हो चुकी हैं.
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आपके शुभ वचनों के लिए हृदय से कोटि-कोटि आभार.
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