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गुरूदेव बोले- बछड़े बहुत दयालु होते हैं. वह तुम्हारे लिए अधिक फेन फेंकते होंगे और खुद भूखे रह जाते होंगे. यह तो उचित नहीं.

अब उपमन्यु उपवास करने लगे. दिनभर बिना कुछ खाए-पीए गायें चरानी पड़तीं. जब भूख बर्दाश्त के बाहर हो गई तो उसने आक के पत्ते खा लिए.

आक का विष शरीर में चढ़ गया और अपमन्यु अंधे हो गए. गायों के पीछे-पीछे चलते वह एक सूखे कुएं में गिर गए. सारी गाएं आश्रम लौट गईं लेकिन उपमन्यु नहीं पहुंचे.

गुरु धौम्य को चिंता हुई. शिष्यों के साथ वह वन में गए और पुकारने लगे. गुरू की आवाज सुनकर उपमन्यु ने बताया कि वह अंधे होकर कुएं में गिर गए हैं.

गुरुदेव ने कुएं से निकाला. फिर उपमन्यु ने सारी बात कह सुनाई. धौम्य को अपने शिष्य की भक्ति और वचनशीलता पर गर्व हुआ.

उन्होंने उपमन्यु को वैदिक मंत्र बताए और कहा कि देवों के वैद्य अश्विनी कुमारों का आह्वान करो और चक्षु दान मांगो. उपमन्यु की स्तुति से अश्विनी कुमार प्रकट हुए.
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