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उपमन्यु ने स्वीकार कर लिया. कुछ दिनों बाद फिर गुरू ने पूछा- उपमन्यु तुम जो कुछ भिक्षा में लाते हो वह तो मुझे दे देते हो, फिर तुम क्या खाते हो?
उपमन्यु बोला- मैं पहले भिक्षा लाता हूं. उसे आपको सौंप देता हूं. फिर मैं दोबारा भिक्षा मांगता हूं और उसी को खाकर अपना निर्वाह करता हूं.
गुरूदेव बोले- दोबारा भिक्षा मांगना तो धर्म के विरूद्ध है. इससे गृहस्थों पर अधिक भार पड़ेगा और दूसरे याचकों को अन्न नहीं मिलेगा. इसलिए दोबारा भिक्षा मांगने मत जाया करो.
उपमन्यु ने कहा- मुझे माफ कर दें. मैं आज से ऐसा नहीं करूंगा.
कुछ दिनों बाद फिर गुरूदेव ने पूछा- उपमन्यु आजकल तुम अपने जीवन का निर्वाह कैसे करते हो?
उपमन्यु बोला- आजकल मैं इन गायों का दूध पीकर ही अपनी जीविका की निर्वाह करता हूं. गुरू ने कहा- ये गायें तो मेरी हैं और मेरी आज्ञा के बिना इनका दूध पीना अपराध है.
उपमन्यु ने अब दूध पीना भी छोड़ दिया. कुछ दिनों बाद फिर गुरू ने पूछा- तुम भिक्षा नहीं मांगते, दूध नहीं पीते. देखकर लगता नहीं कि उपवास कर रहे हो, फिर खाते क्या हो?
उपमन्यु बोला- गुरूदेव जब बछड़े अपनी मां का दूध पीने लगते हैं तब उनके मुंह से गिरा फेन पीकर मैं काम चला लेता हूं.
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