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वाजश्रवा के पुत्र उद्दालक विश्वजीत यज्ञ कर रहे थे. उद्दालक ने अपनी सारी संपत्ति दान कर दी थी. उनकी संपत्ति में वे गाएं भी थीं जो न तो दुधारू थीं और न ही स्वस्थ.
उद्दालक के पुत्र थे नचिकेता. एक बार उद्दालक ने नचिकेता को कहा था कि ऐसी गाएं जिनका दान करना उचित नहीं, अगर उनका दान किया जाए तो उस दान से मंगल के स्थान अमंगल होता है.
नचिकेता इस विचार से अधीर हो उठे क्योंकि दान की गाएं दान के लिए उपयुक्त न थीं. पिता का कहीं कोई अमंगल न हो जाए इस चिंता से दुखी नचिकेता ने सम्मान के साथ उद्दालक से कहा- पिताजी! मैं भी आपका धन हूं, मुझे किसे दान कर रहे हैं?
उद्दालक ने बात अनसुनी कर दी लेकिन नचिकेता बार-बार वही प्रश्न करते रहे- पिताजी! पुत्र सबसे बड़ी संपत्ति होता है, इसलिए मुझे किसे दान कर रहे हैं?
तीसरी बार पूछ्ने पर उद्दालक चिढ़ गए.
क्रोधित होकर बोले– मैं तुम्हें मृत्यु को देता हूं. नचिकेता जरा भी विचलित नहीं हुए.
उन्होंने उद्दालक से कहा -‘शरीर नश्वर है, पर सदाचरण सर्वोपरि. अपने वचन की रक्षा के लिए मुझे यम लोग जाने की आज्ञा दें.
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