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मछुआरों ने कहा- यह तो हमारा आधार है. आप हमारे परिजनों को भूखा न मारें. ऋषि अड़े रहे कि कि वह जाल से तभी निकलेंगे यदि उनकी संतान जैसे इन जल के जीवों को भी मुक्त किया जाए.
मछुआरों ने जाल समेत च्यवन को राजा नहुष के सामने पेश किया. वह भी उलझन में पड़े. च्यवन ने कहा- महाराज आप मुझे और मेरी संतानों को मोलकर खरीद लें और मुक्त कराएं.
नहुष ने मछुआरों को 1000 सोने के सिक्के दिए. वे खुशी-खुशी राजी हो गए. लेकिन च्यवन ने कहा कि आपने मछलियों का मोल तो लगाया, मेरा मोल भी लगाओ. मैं भी इनका शिकार हूं.
नहुष ने दस गुना ज्यादा सिक्के दिए. च्यवन फिर वही बात कहने लगे. उन्होंने कहा- एक तपस्वी का मोल क्या 9000 सिक्के ही होंगे.
नहुष ने अब एक लाख सिक्के दिए. च्यवन मानने को राजी न थे कि अब भी उनकी उचित कीमत चुकाई गई है.
नहुष सिक्के बढ़ाते रहे पर ऋषि को संतोष ही न होता. च्यवन ने कहा- आप मंत्रणाकर मेरा मोल तय करें, वरना मैं तो मछुआरों के साथ जाउंगा. उनके बंदी के रूप में.
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