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राजा रुक्मांगद मोहिनी की नई शर्त सुनकर बेहोश होने लगे पर आज्ञाकारी धर्मांगद ने अपना सिर और रानी संध्यावली ने पुत्र का बलिदान स्वीकार लिया. राजा ने एक बार फिर बहुत समझाया पर वह अपने हठ पर अड़ी रही.
आखिरकार राजा रुक्मांगद तलवार लेकर धर्मांगद का सिर काटने चले. धर्मांगद ने माता-पिता के चरणों में सिर टेककर प्रणाम किया और भगवान् विष्णु के ध्यान में मग्न हो अपना सिर झुका लिया.
भगवान विष्णु राजा रुक्मांगद, रानी संध्यावली और धर्मांगद का धैर्य देख रहे थे. चमचमाती तलवार धर्मांगद के सिर को छूने वाली ही थी, त्यों ही भगवान् श्रीहरि ने प्रकट होकर राजा का हाथ पकड़ लिया.
इस अदभुत नजारे को देवगण भी देख रहे थे. उनके देखते-देखते ही रुक्मांगद अपनी रानी संध्यावली एवं पुत्र धर्मांगद के साथ भगवान् विष्णु में सशरीर विलीन हो गए.
पत्थरदिल मोहिनी भी यह सब देख रही थी. पर राजा के पुरोहित वसु से यह सब देखा नहीं गया. उनके संकल्प लेकर जो मंत्र पढा तो दुष्ट मायावी नारी मोहिनी वही भस्म होकर राख का ढेर बन गई.
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