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राजा ने मोहिनी को बहुत समझाया. बताया कि एकादशी के दिन जो अन्न खाता है वह पापी नरक जाता है, किंतु मोहिनी न मानी और विवाह के समय की शर्त याद दिलायी कि जो मैं कहूँगी उसे मानना ही होगा.

मोहिनी किसी तौर न मानी और कहा- मेरी बात न मानी और यदि आप एकादशी के दिन अन्न ग्रहण नहीं करेंगे तो आप झूठे साबित होंगे और आप को पाप लगेगा, मैं आपको त्यागकर चली जाऊँगी.

धर्मांगद और रानी संध्यावली ने मोहिनी को न जाने के लिए बहुत समझाया, पर वह जाने के लिये तैयार हो गयी. इधर राजा रुक्मांगद मोहिनी भी एकादशी के दिन अन्न न ग्रहण करने के निश्चय पर अटल थे.

रानी संध्यावली ने मोहिनी से कहा- सखि, महाराज ने बचपन में भी एकादशी के दिन अन्न ग्रहण नहीं किया है. इसके लिए मजबूर करने के अलावा कोई और वर मांग लो. पर मोहिनी जिद पर अड़ी रही.

रानी ने कहा, जो स्त्री अपनी कसम दिलाकर पति से ऐसे गलत काम कराती है जो उसे नहीं करना चाहिए वह औरत नरक वास करती है. नरक से निकलने के बाद बारह जन्मों तक सुअरी और फिर चाण्डाली होती है.

हे मोहिनी पति को अपने व्यवहार से दुखी करने वाली सत्तर युगों तक ‘पूय’ नरक में रहने के बाद सात जन्मों तक छछूंदर, फिर कौआ, सियार और बनती है. अंत में गाय होकर शुद्ध होती है.

पर इतना सुन कर भी मोहिनी की बुद्धि नहीं बदली अब उसने एक नई शर्त रखी- राजा रुक्मांगद अपने हाथों से अपने पुत्र धर्मांगद का सिर काटकर भेंट करें या एकादशी के दिन अन्न खायें.

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