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एक दिन राजा रुक्मांगद जब सैर कर रहे थे, उन्होंने मोहिनी को वीणा बजाते देखा. इतनी सुंदरता देख राजा रुक्मांगद मोहित हो गए. राजा ने मोहिनी से विवाह का प्रस्ताव रखा.
मोहिनी बोली- मैं एक शर्त पर विवाह को तैयार हूं. मैं जो कहूं वह आपको करना होगा. राजा ने वह शर्त मान ली और वे मोहिनी को लेकर लौटे तथा सुख भोगने लगे.
कुछ बरस बाद राजा ने बेटे का पराक्रम और शासन कुशलता और अपनी उम्र देखी तो राजपाट बेटे धर्मांगद को सौंप दिया. एक दिन रुक्मांगद का एकादशी-व्रत चल रहा था.
हमेशा की तरह घोषणा हो चुकी थी कि जो भी भगवान् विष्णु के एकदशी व्रत करने वाले मेरे इस आदेश का पालन नहीं करेगा, उसे कठोर दंड दिया जाएगा.
एकादशी के उसी दिन मोहिनी अपने पति रुक्मांगद से अन्न खाने के लिए जिद करने लगी. उसने कहा कि गृहस्थ राजा को जो खूब मेहनत करता है उसे कभी भी अन्न नहीं छोड़ना चाहिए.
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