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यमराज ने कहा- पितामह! धरती पर रुक्मांगद का राज है. वे नारायण का अनन्य भक्त हैं. भगवान विष्णु की पूजा आराधना ही उनका जीवन है.
राजा ने समूची प्रजा के लिए एकादशी-व्रत का कठोर नियम बना रखा है. सबको एकादशी अनिवार्य कर दी है. एकादशी के पुण्य प्रभाव से सारे लोग जीवन त्याग कर सीधे वैकुण्ठ-धाम चले जा रहे हैं. यमलोक में कोई आ ही नहीं रहा है, हम लोग बेकार बैठे हैं.
ब्रह्माजी ने ध्यान लगाया तो पता चला कि एकादशी के दिन रुक्मांगद की ओर से यह घोषणा होती थी कि आज के दिन आठ वर्ष से अधिक और पचासी वर्ष से कम आयु वाला जो भी मनुष्य अन्न खाएगा, उसे दंड मिलेगा.
सभी लोगों के लिए एकादशी के दिन गंगा स्नानकर व्रत रहना होता है. सब उस दिन दान-पुण्य करते हैं सो धर्म के प्रभाव से प्रजा सुखी एवं समृद्ध थी.
राजा की पतिव्रता पत्नी संध्यावली देवी लक्ष्मी सरीखी थीं तो बेटा धर्मांगद योग्य और आज्ञाकारी.
धर्मांगद खुद सेवकों के साथ हाथी के सिर पर रखे नगाड़े बजवाते हुए घोषणा कराता कि ‘सब लोग एकादशी व्रत का पालन करें और भगवान विष्णु का ध्यान धरें.’ यह सब जानकर ब्रहमा जी खुश हुए.
यह और चित्रगुप्त की बातें सुनकर रुक्मांगद की महिमा जानने के बाद उन्होंने मोहिनी नाम की एक सुंदर नारी को प्रकट किया. रूपवती मोहिनी को उन्होंने कुछ सिखा समझा कर धरती पर भेजा.
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